कांग्रेस द्वारा संयुक्त भारत के अपने आदर्श को त्यागकर विभाजन की बात स्वीकार करने का प्रमुख कारण यह था की कांग्रेसी नेताओं ने अनुभव किया की गृहयुद्ध की अपेक्षा विभाजन श्रेयस्कर है।
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