अगर हम बिहार में लोकतंत्र की चुनौतियों पर नजर डालते हैं तो आज बिहार में भ्रष्टाचार, जातिवाद, क्षेत्रवाद, परिवारवाद जैसी बुराइयाँ यहाँ निर्णायक भूमिका निभाती है । हाल के दशकों में यह परंपरा बनी कि जिस जनप्रतिनिधि के निधन या इस्तीफे के कारण कोई सीट खाली हुई उसके ही किसी परिजन को चुनाव का टिकट दे दिया जाए । बिहार में परिवारवाद की यह स्वरूप लोकतंत्र की खामियों को दर्शाता है । सत्तारूढ़ जद(यू) ने 2009 में सम्पन्न हुए बिहार विधानसभा के उपचुनावों के दौरान यह कह दिया था कि किसी परिजन को पार्टी होनेवाले चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाएगी । बिहार में दूसरी समस्या जातिवाद की है । बिहार की राजनीति में जातिवाद काफी हद तक अपनी जड़ें जमा चुकी है । जातीय वोट बैंक बनाकर वर्षों तक चुनाव जीतनेवाले कुछ नेता तथा राजनीतिक दल इस मुद्दे को लेकर काफी परेशान हैं । अगामी 2010 का बिहार विधानसभा का आम चुनाव यह बता देगा कि जातीय वोट बैंक की राजनीति कारगर रहेगी या नहीं ।