भारत आंतरिक व बाह्य दृष्टि से किसी विदेशी सत्ता के अधीन नही है और प्रभुत्व संपन्नता भारत की जनता मे निहित हैं।
प्रभुसत्ता या संप्रभुता की संकल्पना राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में अपनी विशेष महत्ता रखती हैं। यूनान के विचारक इस शब्द से परिचित नही थे। हम इस तथ्य को देख सकते है कि अरस्तु ने राज्य की 'सर्वोच्च शक्ति' पदबन्ध का प्रयोग भिन्न अर्थ में किया