मैंने देश भर के बहुत से संस्थानों की करीब 100 पीएचडी थीसिस का इवैल्यूएशन किया होगा। जहाँ यह रिसर्च की गई थी, उनमें से कुछ संस्थान तो नामी-गिरामी थे तो कुछ औसत या साधारण स्तर के। थीसिस भी कुछ एक तो विश्वस्तरीय थी लेकिन अधिकतर निम्नतम स्तर की ही मिली। मिले अनुभव ने मुझे इस काम के प्रति अरुचि पैदा कर दी है।
रिसर्च थीसिस के मूल्यांकन के द्दष्टिगत हुए अब तक के अनुभव का सार कुछ इस प्रकार का है:
- देश में की गई रिसर्च से थोड़ी पीएचडी थीसिस का लेवल विश्वस्तरीय होता है। बाकी अधिकतर थीसिस में खुद की सोंच ना होकर अन्य की नकल मात्र होती है।
- अच्छी थीसिस अधिकांशतः नामी-गिरामी संस्थानों की होती हैं, परन्तु यह जरूरी नहीं है उनकी प्रत्येक रिसर्च ओरिजनल ही हो।
- जिन संस्थानों में पीएचडी डिग्री के लिए थीसिस वर्क 'पारसियल फुलफिलमेंट' है, वहाँ छात्रों के ज्ञान का स्तर ठीक-ठाक होता है। भारत में चूँकि अधिकांश विश्वविद्यालयों में ऐसा नही है अतः इन छात्रों को पीएचडी के दौरान पहले पढ़ा हुआ भी भूल जाता है।
ऐसा क्यों है?
- अन्य ऑपर्चुनिटीज (नौकरी आदि) से बंचित बचे खुचे छात्र ही पीएचडी में दाखिला लेते हैं, और ये भी रिसर्च के प्रति गंभीर नहीं होते। इनका मुख्य उद्देश्य होता है, कंपेटेटिव एक्जाम पास करके नौकरी पाना। ऐसे में इनसे क्वालिटी रिसर्च की उम्मीद करना बेमानी है।
- यूनिवर्सिटीज को रिसर्च की इजाज़त तो मिल जाती है, लेकिन अधिकतर में उसके लिए जरूरी साजो-सामान व सुविधाओं की कमी होती है।
पीएचडी छात्र को फेल करना अपने लिए मुसीबत को न्योता देना होता है, क्योंकि-
- (1) तीन एक्सपर्ट में से यदि दो ने थीसिस पास कर दी सही तो तीसरे का मत कोई माने नहीं रखता। टिप्पणियों का भी कोई मतलब नहीं रह जाता क्योकि अंत मे आप को सिर्फ 'पास' या 'फेल' लिखना रहता है;
- (2) छात्र ने थीसिस जमा करने में चार-पाँच साल का समय बिताया होता है, अतः फेल करने पर बहुत बड़ी ग्लानि का अहसास होता है;
- (3) फेल करने की स्थिति में आप 'छात्र उत्पीड़न' के झूण्ठे आरोपों (जाति, धर्म, लिंग आधारित) में घिरने के लिए तैयार रहिए;
- (4) रिसर्च गाइड भी अक्सर इन आरोपों के घेरे में काम करते हैं। ऐसे में एक्सपर्ट को थीसिस निम्न स्तर की होने पर भी गाइड की रेपुटिशन के मद्देनजर निर्णय करना होता है।
विदेश से पीएचडी करने को वरीयता क्यों?
- विदेश से पीएचडी कर रहे छात्रों की रिसर्च लैब उस काम के लिए पूर्णतया सुसज्जित होती है। उन्हें अपना समय चीजों को अरेंज करने में बर्बाद नहीं करना पड़ता
- केवल विषय के स्पेसलिस्ट ही रिसर्च को गाइड करा सकते हैं। देश मे सिर्फ नौकरी में बिताए साल ही इसका आधार होते हैं।
- बाहर रिसर्च के साथ साथ उस विषय पर पढ़ाई, परीक्षा, लेक्चर देना तथा रिसर्च लेख छापने की भी अनिवार्यता होती है।
निष्कर्ष:
देश के कुछ संस्थानों में पीएचडी प्रोग्राम, पाठक्रम, व सुविधायें विश्वस्तरीय हैं लेकिन घटिया रिसर्च या दूसरे की नकल पर आधारित काम बहुतायत में है। देश के पीएचडी पाठक्रम व परीक्षा के तरीकों में बदलाव; लैब में बेहतर सुविधाएं; रिसर्च गाइड के ज्ञान में अपडेटिंग व उत्स्कर एथिक्स में बदलाव की जरूरत है।
सोर्स: (गिरीश चंद्र तिवारी)