रामकृष्ण मिशन की स्थापना
रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने 1 मई, 1897 में की थी। उनका उद्देश्य ऐसे साधुओं और सन्यासियों को संगठित करना था, जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखें, उनके उपदेशों को जनसाधारण तक पहुंचा सकें और दु:खी एवं पीड़ित मानव जाति की नि:स्वार्थ सेवा कर सकें। मठ की स्थापना कोलकाता के पास बारानगर में की गई। उसके बाद वेलूर (कोलकत्ता) में मिशन की स्थापना की गई। मिशन का दूसरा मठ अल्मोड़ा में स्थापित किया गया।
मानव हित के लिए रामकृष्ण देव ने जिन सब तत्वों की व्याख्या की है तथा कार्य रूप में उनके जीवन में जो तत्व प्रतिपादित हुए हैं, उनका प्रचार तथा मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं पारमार्थिक उन्नति के लिए जिस प्रकार सब तत्वों का प्रयोग हो सके, उन विषयों में सहायता करना, इस संघ का उद्देश्य था। इस प्रकार के संगठन द्वारा वे वेदान्त दर्शन के तत्वमसि सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देना चाहते थे।
रामकृष्ण मिशन के सिद्धान्तों में वैज्ञानिक प्रगति तथा चिन्तन के साथ प्राचीन भारतीय अध्यात्मवाद का समन्वय इस दृष्टि से किया गया है कि यह संस्था भी पाश्चात्य देशों की भांति जनकल्याण करने में समर्थ हो। इसके द्वारा स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाये जाते हैं और कृषि, कला एवं शिल्प के प्रशिक्षण के साथ-साथ पुस्तकें एवं पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती हैं। इसकी शाखाएं समस्त भारत तथा विदेशों में हैं। इस संस्था ने भारत के वेदान्तशास्त्र का संदेश पाश्चात्य देशों तक प्रसारित करने के साथ ही भारतीयों की दशा सुधारने की दिशा में भी प्रशंसनीय कार्य किया है।
लखनऊ में रामकृष्ण मठ या सेवाश्रम, रामकृष्ण मठ और मिशन, बेलूर का हिस्सा है। यहां दो प्रमुख संस्थान है। पहली संस्था विवेकानंद पालीक्लीनिक नामक एक मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल है। इस अस्पताल परिसर में चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के अलावा, आसपास के गांवों में भी स्वास्थ्य कार्यक्रमों को चलाया जाता है।
इस पॉलीक्लीनिक का उद्घाटन 1970 में मठ और मिशन के तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी विरेश्वरानंद द्वारा किया गया था। इस अस्पताल परिसर के द्वार पर 14 फुट ऊंची कांस्य की स्वामी विवेकानंद की मूर्ति लगी हुई है जिसे प्रसिद्ध मूर्तिकार देवी प्रसाद राय चौधरी ने बनाया था। यह मूर्ति, सभी को प्रेरित करती है।