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Pratham Singh in भूगोल
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आहार-जाल को परिभाषित कीजिये

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Deva yadav
मानव सहित सभी जीव अपनी भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा उनमें भोजन के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती है। इस प्रकार पारिस्थितिक तन्त्र में एक जीव से दूसरे जीव में ऊर्जा का स्थानान्तरण’खाद्य-श्रृंखला’ कहलाता है। उदाहरण के लिए-खरगोश, हिरण, भेड़, बकरी आदि जीव घास (पौधों) से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, परन्तु लोमड़ी खरगोश को खा जाती है। और शेर लोमड़ी को खा जाता है। परन्तु विघटक पौधों और जीवों के सड़े-गले अंश से ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं। ये जैव पदार्थों को अजैव पदार्थों में बदल देते हैं जिन्हें हरे पौधे ग्रहण कर लेते हैं। इस प्रकार खाद्य–श्रृंखला का चक्र पूर्ण हो जाता है। परन्तु अपघटक पौधों एवं मृत शरीरों के ऊतकों से ऊर्जा और पोषक तत्त्वों को ग्रहण करते हैं। अपने भोजन की प्रक्रिया में अपघटक जीव, जैव पदार्थों को अजैव पदार्थों में परिणत कर देते हैं। इस प्रकार प्रकृति में खाद्य-श्रृंखलाएँ जटिल बन जाती हैं तथा इनका एक जाल-सा बन जाता है। जीवों द्वारा पारस्परिक रूप से सम्बन्धित खाद्य-श्रृंखलाओं के जटिल समूह को आहार-जाल कहते हैं।

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