यह नदी की मैदानी अवस्था होती है। युवावस्था के बाद जैसे ही नदी पर्वत प्रदेश से मैदानों में प्रवेश करती है, उसका वेग एकदम मन्द हो जाता है। इस अवस्था में नदी में सहायक नदियों के मिलने से जल की मात्रा तो बढ़ जाती है परन्तु जल में तेज गति न होने के कारण उसकी वहन शक्ति क्षीण हो जाती है। अतः पर्वतीय क्षेत्रो से लाए गए अवसाद तथा शिलाखण्डों को नदी पर्वतपदीय क्षेत्रों में ही जमा कर देती है, जिसे पर्वतपदीय मैदान कहते हैं। गंगा नदी ऋषिकेश एवं हरिद्वार के निकट ऐसे ही अवसादों का निक्षेप करती है। इस अवस्था में नदी गहरे कटाव की अपेक्षा पाश्विक अपरदन (Lateral Erosion) अधिक करती है। कभी-कभी नदी क्रा एक किनारा खड़े ढाल वाला तथा दूसरा प्रायः समतल होता है। ऐसी दशा में नदी खड़े किनारे की ओर अपरदन तथा समतल किनारे की ओर निक्षेपण का कार्य करती है। इस अवस्था में नदी अपनी घाटी को चौड़ा करने का कार्य ही अधिक करती है।।