कवि के अनुसार जिस प्रकार दीपक के जलने पर अंधकार अपने-आप दूर हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञानरूपी दीपक के हृदय में जलने पर अज्ञानरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है। यहाँ दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है और अँधियारा अज्ञान का प्रतीक है। ज्ञान का प्रकाश होने पर मन में स्थित काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार आदि दुर्गुण समाप्त हो जाते हैं। अज्ञान की अवस्था में मनुष्य अपने ही हृदय में विराजमान ईश्वर को पहचान पाने में असमर्थ होता है। वह अपने-आप में ही डूबा रहता है। ज्ञान का प्रकाश होने पर वह परमात्मा साक्षात्कार में सफल हो जाता है। उसे अपने सब ओर ईश्वरीय सत्ता का आभास होता है। मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है।