नागरिक विजयपर्व मनाने में व्यस्त हैं। उनकी व्यस्तता जायज नहीं है क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं है कि विजय किसकी हुई है। सेना की, शासक की या नागरिकों की । बिना जाने विजयपर्व मनाना अपनी क्षमता का क्षरण करना है। नागरिकों को उदर-भरण की चिंता है । वे स्वार्थ के वशीभूत हैं । उन्हें देश की समस्याएँ नहीं घेरती हैं । वे राष्ट्रीय प्रश्नों से विमुख हैं । उनका दृष्टिकोण सीमित है । वे वैयक्तिक सुख-दुःख में ही व्यस्त हैं । उनकी यह स्वार्थपरता उचित और वांछनीय नहीं है ।